Thursday 5 December 2013

दबे अंधेरे में

दबे अंधेरे में
दबे अंधेरे में एक चिंगारी जो
अब तक छुपी थी माचिस की एक डिबिया में
निकल पड़ी तीली रगड़ने से
उसने सूखी पत्तिओं को छुआ
और वह निकल पड़ीं आग में दहकने को

Thursday 12 September 2013

मैं मधुशाला में

मैं मधुशाला में

मैं मधुशाला में नित दिन नहीं रहता
बोतलें देख कर मुझे मुस्कुरातीं हैं
कैसे कैसे इशारे कर मुझे बुलाती हैं
मैं ना जाऊं तो वो मुझ से रूठ जाएँगी
और शायद हमारे बीच की कड़ी टूट जाएगी